बूढ़ी यादें
एक शाख़ पे आके बैठ गया,
कोई, दूर का मुसाफ़िर लगता है;
जाने किस शहर से आया है,
जाने किस शहर को जाएगा।
मुझको तो वो कोई,
जाना पहचाना सा लगता है,
जैसा उससे रिश्ता कोई,
अनजाना सा लगता है।
एक शाख़ पे आके बैठ गया,
कोई, दूर का मुसाफ़िर लगता है;
जाने किस शहर से आया है,
जाने किस शहर को जाएगा।
मुझको तो वो कोई,
जाना पहचाना सा लगता है,
जैसा उससे रिश्ता कोई,
अनजाना सा लगता है।
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