बूढ़ी यादें
एक शाख़ पे आके बैठ गया,
कोई, दूर का मुसाफ़िर लगता है;
जाने किस शहर से आया है,
जाने किस शहर को जाएगा।
मुझको तो वो कोई,
जाना पहचाना सा लगता है,
जैसा उससे रिश्ता कोई,
अनजाना सा लगता है।
एक शाख़ पे आके बैठ गया,
कोई, दूर का मुसाफ़िर लगता है;
जाने किस शहर से आया है,
जाने किस शहर को जाएगा।
मुझको तो वो कोई,
जाना पहचाना सा लगता है,
जैसा उससे रिश्ता कोई,
अनजाना सा लगता है।
In you,
I am born again,
New and free,
Away from pain
Fears and tears.
I cruise my boat,
In the sea of hope
Towards your soothing shores.